शुक्रवार, 15 मई 2020

ख्वाहिश मेरे अरमानों की दुनिया


मैं अपने आंगन की गुड़िया
बाबुल की प्यारी और  दुलारी
अम्मा की आंखों की ज्योति
भाइयों के हर एहसास हू मैं,
अपने बाबुल की हर उम्मीद भाई की कलाई में बधा प्यार हूं
अपनी कल्पना की उड़ान हूं मैं
क्योंकि अब मैं अपनी पहचान हूं
मैं अपने आंगन की  गुड़िया
छोड़कर अपना आगन चल पड़ी है मंजिल की तलाश में
अनजान हूं मैं आने वाले रास्तों से पर एक विश्वास हूं
चली हूं मैं हर उम्मीद सवारने को
आसमा को अपनी बाहों में भरने
क्योंकि अब मैं अपनी पहचान हूं
मैं अपने आंगन की गुड़िया

निकली थी जब घर से में मन में एक विश्वास था
डर नहीं था मन में अपनों का साथ था
पर क्यों ऐसे मोड़ पर जमाना जालिम हो गया
अक्सर हर मोड़ पर अपने साए से डर लगने लगा
सोचती थी सभी हैं अपने पर अपनों से दूर होंगे
टूट गए सारे अरमा मेरे जब जमाना यह जालिम हो गया
भरोसा था अपने पर मुझको लेकिन अब कहीं खो गया
मैं अपने आंगन की गुड़िया

मतलबी फरेबी इस दुनिया में मेरी हस्ती जैसे खो गई
मुझ जैसे को याद रखने वालों की अब दुनिया में कमी हो गई
चंद कैंडल जला दिए और नारे लगा दिए
और मेरी पहचान खो गई
मैं अपने आंगन की



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