सोमवार, 18 मई 2020

अंधकार हुई नगरी में दिया जलाने आया हूं।

अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।
जिनका जमीर सो गया है उसे जगाने आया हु।
पथ से भटक गए राहगीरों को मार्ग पर ले जाने आया हूं।
अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

नफरत की आग से जल रहे घरों को
प्यार की बारिश से बुझाने आया हूं।
हम एक हैं यह पैगाम लेकर
सबको एक समाज में पिरोने आया हूं।
अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

गुरुजनों के इस धरती पर  की सभ्यता बचाने आया हूं।
अब ना हो किसी के साथ अत्याचार
यह संदेश जन-जन तक पहुंचाने आया हूं।
मैं भी इंसान हूं , इंसानों का दर्द आप तक पहुंचाने आया हूं। अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

3 टिप्‍पणियां:

फेम की मदहोशी

  यौवन   : वो मौसम जिसको आना तो एक बर हैं। समय के             साथ बिखर जाना भी हैं।         खूबसूरत कलियों को देख भोरे खींचे चले आते है।    ...