है मर्जी तेरी क्या?
क्यों खामोश हो जाते हैं अधरों की मुस्कान
क्या लिखा है मेरी हाथों की लकीरों में,
यह भी तो नहीं पता ।
है तेरी मर्जी क्या?
खोजता आ रहा हूं मैं जिसको वह तो मेरे पास है।
क्यों भटक रहा हूं अंधेरी गलियों में जब मुझे उजाले की तलाश है।
यह कैसी चाहत है यह भी नहीं पता
है तेरी मर्जी क्या?
चंद लम्हों की बात है।
जिंदगी भी गुजरती एक रात है।
लहरें भी किनारे पर आ जाती है।
लेकिन ऐसा साथ कहां
है मर्जी तेरी क्या ?
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