शनिवार, 13 जून 2020

जल का महत्व जीवन के लिए।

धरातल की गहराई शीतल धारा की तरह बहती  हूं। मैं,
पानी से पूछा मैंने कि तेरी तासीर है क्या जीवन में,
मन को शांत कर देती हैं और तन को शीतल कर देती है।
तृष्णा मिटाती हूं मैं प्राणी के जीवन में, सबके लिए मूल्यवान
 हूं ।मैं,
जल की ही धारा ने प्रकृति को सुंदर बनाया हर एक के जीने की चाह हूं। मैं,
धरातल की गहराई में शीतल धारा की तरह रहती हूं। मैं,


बूंद बूंद से बन कर मेरी जलधारा का निर्माण हुआ
जब मैं आई वसुंधरे में। तो लोगों का कल्याण हुआ।
नदियों की गोद में मैं खेलती शीतल धारा की तरह बहती हूं।
 मैं,
निरस है प्राणी मेरे बिना मेरी ही हर बुद लोगों को जीवन देती हूं । मैं,
सेवा की भावना मुझसे ही उत्पन्न हुई लोगों की प्यास बन कर।
धरातल की गहराई में शीतल धारा की तरह बहती हूं। मैं,

उद्गम हुआ जब मेरा मैं पर्वत पठार नदियों झीलों में रहती हूं मैं।
मेरी ही शीतल धारा के कारण लोगों की प्यास बुझती है।
 वन उपवन है,सब हरा भरा और हरियाली मुझसे ही फूलती और फलती है।
सभ्यता का जब विस्तार हुआ मेरे ही जल धारा के किनारे उसका विकास हुआ।
मैं ही जीवन देने वाली बनी प्रकृति के संग मैं चलती रही
मेरे ही एक बूंद से जीवन का निर्माण हुआ।
धरातल की गहराई में शीतल धारा की तरह बहती हु। मैं,

एक दौर तरक्की का आया मैं भी साया बनकर चलने लगी।
मानव ने अपना विस्तार किया और मेरा अस्तित्व कहीं ढलने लगा।
सूखते चले गए जहां जहां जहां मेरा उद्गम हुआ।
मानव ने अपने महत्व के आगे मेरी धारा को दूषित किया।
समय जैसे-जैसे बढ़ता गया मानव जाति से दूर को चली
पहले थी में धरातल की गोद में अब मैं वहां से भी सूखते चली।
आने वाले वक्त में मैं अपना ही अस्तित्व को ना बचा पाऊंगी।
जीवन तो रहेगा पर की परिभाषा बस रहे जाएगी ।
धरातल की गहराई में शीतल धारा की तरह बहती हूं। मैं,

अभी कुछ नहीं गया थोड़ा सा जतन कर लो।
जागरूक हो जाओ और जल को बचाने का प्रयत्न कर लो।
धरातल पर जल तो होगा पर उसने मिठास ना होगी।
जल तो बहुत है पर खारा है उसे पीने से प्यास नहीं  बुझेगी
नदियों को संरक्षण कर उसे दूषित होने से बचा लो।
अपने इस वसुंधरे को  प्रदूषण से मुक्त कर दो।
जल की हर बूंद को जीवन का अभिन्न अंग मानकर सुरक्षित कर लो।
जलधारा की बस इतनी सी यही कहानी है।
अपने लिए नहीं तो आने वाले भविष्य के लिए सुरक्षित कर लो।
धरातल की गहराई में शीतल धारा की तरह रहती हूं ।मैं,


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