रविवार, 31 मई 2020

मानवता ही धर्म है

धर्म में ना कोई राम है ना कोई रहीम हैं।
धर्म में मानव एक समान है।
मानवता को बचा लिया तो धर्म हुआ।
फिर मानव ने अपने-अपने धर्म बना लिए
वर्ण व्यवस्था के जाल में हम सब को फंसा दिया
ये  हीन भावना मानव ने  ही फैलाया हैं।
धर्म ना कोई हिंदू न कोई मुस्लिम है।
धर्म में मानवता एक समान है।

विडंबना देखो हम जाति के चक्कर में।
अपनों का लहू बहाते हैं कर देते हैं नफरत की बारिश उन बूंदों से अपनी प्यास बुझाते हैं।
जिसकी आवेग में आकर पूरे समाज का अंत कर जाते हैं।
जिसका अंत हुआ वो कोई गैर नहीं वह भी तो एक इंसान है।
इसी हिन  भावना के चक्कर में मानव धर्म भूल जाता है।
धर्म में ना कोई जाति ना भेदभाव
धर्म में मानवत एक समान हैं।

मानव ने अपने को कैसे हाल में डाल दिया।
अपने को जातिवाद के दलदल में डुबो दिया।
कर डाले बंटवारे जो पहले एक कुटुम समाज था।
मानवता ही धर्म थी और मानव ही समाज था।
अब तो आपस की यही लड़ाई है।
हम इंसान क्यों भूल गए हम सब आपस में हम भाई भाई हैं।
अपनों को कई धर्मों में बांट लिया और मानवता को भूल गए ।
धर्मा कोई जातिवाद भेदभाव
धर्म में मानवता एक समान है।

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