रविवार, 31 मई 2020

दिल्लगी

💓मोहब्बत से मुखातिब खाते थे पर इश्क से हमें डर लगता था।
देखते थे जब हम अपने को आईने में प्यार का अश्र दिल में कहीं घर कर रखा था।
👩‍❤️‍👨न ने कब उनके रूबरू हो गए दिल कब उनका हो गया है यह भी पता ना चला।

💔अंजाम मोहब्बत मालूम था मुझको आंखों की गुस्ताखियां की मोहब्बत किया और उन्हें रोने ना दिया।💦

बहुत समझाया हमने💓 दिल को वो कभी💞 तुम्हारे नहीं होंगे फिर भी दिल ने तो दिल्लगी कर रखी थी और हमें रातों को सोने ना दिया।🛌
दिल ने शिद्दत🙏 से की मोहब्बत -2 उनको पाने की पर वो किसी और के जहनसीब हो गए।
शायद दिल के दरिया में मोहब्बत की कश्ती का सफर यहीं तक  का था
💞दिल तो दिल्लगी कर रखी थी। इसीलिए और किसी का हमें होने ना दिया।,,👸

मानवता ही धर्म है

धर्म में ना कोई राम है ना कोई रहीम हैं।
धर्म में मानव एक समान है।
मानवता को बचा लिया तो धर्म हुआ।
फिर मानव ने अपने-अपने धर्म बना लिए
वर्ण व्यवस्था के जाल में हम सब को फंसा दिया
ये  हीन भावना मानव ने  ही फैलाया हैं।
धर्म ना कोई हिंदू न कोई मुस्लिम है।
धर्म में मानवता एक समान है।

विडंबना देखो हम जाति के चक्कर में।
अपनों का लहू बहाते हैं कर देते हैं नफरत की बारिश उन बूंदों से अपनी प्यास बुझाते हैं।
जिसकी आवेग में आकर पूरे समाज का अंत कर जाते हैं।
जिसका अंत हुआ वो कोई गैर नहीं वह भी तो एक इंसान है।
इसी हिन  भावना के चक्कर में मानव धर्म भूल जाता है।
धर्म में ना कोई जाति ना भेदभाव
धर्म में मानवत एक समान हैं।

मानव ने अपने को कैसे हाल में डाल दिया।
अपने को जातिवाद के दलदल में डुबो दिया।
कर डाले बंटवारे जो पहले एक कुटुम समाज था।
मानवता ही धर्म थी और मानव ही समाज था।
अब तो आपस की यही लड़ाई है।
हम इंसान क्यों भूल गए हम सब आपस में हम भाई भाई हैं।
अपनों को कई धर्मों में बांट लिया और मानवता को भूल गए ।
धर्मा कोई जातिवाद भेदभाव
धर्म में मानवता एक समान है।

मंगलवार, 26 मई 2020

समय बदल गया पर हालात नहीं।


छोटे सपने थे उनमें खुश रहते थे।
खुशहाल था परिवार मेरा जब हम छोटी-छोटी खुशियों में हम खुश रहते थे।
दौड़ तरक्की आया सब जगने लगे
अरमानों के पंख लगा कर हम सब उड़ने लगे।
खुशियों की चाहत में अपनों से दूर होने लगे।
खुशहाल था परिवार में जब हम छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहते थे।


जीवन बदल गया आमदनी होने लगी।
सपने तो बड़े हो गए पर जीवन में उधारी होने लगी।
Credit or debit का खेल ऐसा खेला।
जिंदगी में लोस होने लगी।
खुशहाल का परिवार मेरा जब हम छोटी-छोटी खुशियों में जब हम खुश रहते थे ।

हर वस्तु लोन पर लेने लगे
सुख सुविधाओं की कमी सी होने लगी।
हर वस्तु की किस्त चुकाते हुए अब जिंदगी किस्तों पर चलने लगी
क्रेडिट और डेबिट का खेल ऐसा खेला
 जिंदगी में लोस होने लगी।
खुशहाल था परिवार मेरा जब हम छोटी-छोटी खुशियों में जब हम रहते थे।

रविवार, 24 मई 2020

जिंदगी ख्वाब है या है एक पहेली।

जिंदगी कभी ख्वाब है या है एक पहेली।

जिंदगी कभी ख्वाब है या है पहेली
 कभी संग है तो कभी अकेली
तन्हा होकर क्यों तन्हा नहीं रहे।
पास होकर भी कभी हमारे नहीं हुए।
जिंदगी ख्वाब है या है एक पहेली।

आंखों में कई सपने होते हैं।
फिर क्यों अरमानों की आग में जलते हैं।
क्या साथ था और क्या छूट गया
मुड़कर कभी देखा नहीं।
जिंदगी ख्वाब है या है पहेली
 कभी संग है तो कभी अकेली।

गैरों के लिए जियो यारों अपने तो अपने
गैरों का अगर साथ मिले वो भी तो अपने है।
खुशियां तो मिल ही जाएंगे जब किसी और के लिए जियो
जिंदगी में खुश रहने के लिए कोई वजह तो हो।
जिंदगी ख्वाब है या है एक पहेली 
कभी संग है तो कभीअकेली।

शनिवार, 23 मई 2020

शहर

शहर की इंसानी बस्तियां अब वीरान हो चली।
खिलता था शहर बाजारों में उन गलियों में खामोशी हो गई।
आशियानो में अब परिंदों का आसरा बन गए।
इंसान उन सब को छोड़ कर अपने पुराने मकान में लौट चलें। शहर की इंसानी बस्तियां अब वीरान हो चली।

कह गए कि अब नहीं आएंगे इस शहर में,
जिसने हमें दर्द के सिवा कुछ और न दे सका।
हमने तो सब कुछ दिया फिर भी चलते हैं रास्ते पर
जिसने हमें दूरियों को कम कैसे करें ये सिखा दिया।
शहर की इंसानी बस्तियां अब वीरान है चली।

हमें अपने सपनों को भूल गए  इन आशियानो को सजाने के लिए।
हमें मोहलत नहीं मिली अपने आशियां बनाने के लिए।
शहर के कुछ लोगों ने ये ऐसा भाव दे दिया।
जिसे भुलाने के लिए न जाने कितने दर्द से हमें गुजरना पड़ा।
शहर की इंसानी बस्तियां वीरान हो चली

गुरुवार, 21 मई 2020

मेरे अधूरे सपने


मेरे अधूरे सपने मन में एक उम्मीद जगाते रहते हैं।
ज्यादा नहीं  मांगता कुछ पल का साथ चाहिए था तुम्हारा
तेरी ही जुस्तजू है जो दिल में तेरी याद दिलाती है ।
मेरे अधूरे सपने मन एक उम्मीद जगाते हैं।

तुम मेरे ख्वाबों की मल्लिका तेरे बिन जिंदगी अधूरी है।
तेरी छवि  को दिल में सजा के रखा है दुल्हन की तरह
आ जाओ मेरी दुनिया में जो तुम बिन अधूरी है।
 मेरे अधूरे सपने मन एक उम्मीद जगाते रहते हैं।
कभी अकेले तनहाई में अक्सर अपने से ही बातें करता रहता है।
तुम्हारे साथ बिताए पल को अपने मन के आंगन में सजाया करता हूं।
कभी तो आओगे मेरे जीवन में इस सहारे ही जी लिया करता हूं।
मेरे अधूरे सपने मन में एक उम्मीद जगाते रहते हैं।

मंगलवार, 19 मई 2020

संघर्ष जीवन का


संघर्ष ही है जो जीवन को निखार देता है।
संघर्ष बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता है।
हार और जीत दो पहलू हैं जिंदगी के
किंतु संघर्ष कभी खत्म नहीं होता है।
संघर्ष ही है जो जीवन को निखार देता है।

संघर्ष ही है जीवन को जीने के लिए
कठिन परिस्थितियों में भी अपने वजूद को कायम रखते हैं।
संघर्ष ही जीवन का दर्पण है  जीवन को निखार देता है।
रगड़ रगड़ कर शीला को काट देती है वह निर्मल रस्सी भी संघर्ष करती है।
संघर्ष ही है जो जीवन को निखार देता है।


राही कभी आसान नहीं होती
पल पल जो ठोकर खाते हैं।
सीखता वही है जो हर रास्ते को सहज बनाते हैं 
परिस्थितिया कठिन तब हो जाती हैं।
मंजिल को पास देख कर संघर्ष करना भूल जाते हैं।
संघर्ष ही है जो जीवन को निखार देता है।

परिवर्तन


समय के इस दौर में परिवर्तन भी जरूरी है
भावी पीढ़ी के सपनों का भी होना जरूरी है।
मंजिल  को पाना है तो परिश्रम करना भी जरूरी है।
उम्मीद को कभी खत ना होने दो
मंजिल को हासिल करना है उम्मीद का होना जरूरी है। 
समय के इस दौर में परिवर्तन भी जरूरी है।


जिज्ञासा है प्रश्नों का होना जरूरी है।
जिज्ञासा नहीं तो जीवन अधूरा है।
खुशियां हैं तो रंगों का होना जरूरी है।
कुछ पाने की ख्वाहिश है उम्मीद का होना जरूरी है।
समय के इस दौर में परिवर्तन भी जरूरी है

समय की महत्वता को समझें उसे अपना
 समय छूट गया एक बार लौट के नहीं आए
इसीलिए समय का सदुपयोग भी जरूरी है।
 ख्वाहिश भरी दुनिया बदलाव का होना भी जरूरी है।
समय के इस दौर में परिवर्तन भी जरूरी है।

बेटियां


अक्सर बेटी की चाहत होती हैं।
बेटा ही सब कुछ हो ऐसा भी होता नहीं
बेटी भी घर की शोभा होती है।
फिर क्यों बेटे की चाहत में बेटियों का गला घोट देते हैं।
महकता है आंगन उनका भी जिनके घर बेटियां होती हैं।
एक नालायक बेटे से कहीं अच्छी बेटी होती है।

अपने ही लाभ के कारण छोड़ देते हैं दामन जिसका
बेटियां थाम लेती हैं हाथ उनका भी,
फर्क है उन लोगों की सोच में,
 क्यों फिर बेटे की चाहत में बेटियों का गला घोट देते हैं।

सोच बदल कर देखो अपनी
उस घर में कितनी खुशियां होती है।
जिस घर में बेटियां होती है।
स्वर्ग बना देती है छोड़ के आंगन अपने पिता का
जो दूसरे का दामन थाम लेती  है।
बेटियां हैं तो घर की शोभा होती है।
फिर क्यों बेटे की चाहत में बेटियों का गला  घोट देते हैं।

इंसानियत

क्या रखा है मंदिर मस्जिद गिरजा और गुरुद्वारे में।
हम सब के ह्रदय में एक इंसान हैं रहता
जोकि एक प्रेम की भाषा ही है समझता ।




किसी के दिल को दुखा कर हम खुश नहीं रह सकते
इंसानियत जब तक जिंदा है इस दिल में,
क्यों भर रखा है नफरत भरे अंगारे इस दिल में,
जिस मासूम से दिल में प्यार है रहता



कुछ गलतफहमी है तो प्यार से सुलझा लो
ना रहे यह फासले गैरों  के बीच
हमको भी अपना बना ले
क्या रखा है मंदिर मस्जिद गिरजा और गुरुद्वारे में
हम सबके हृदय में इंसान ही बसता

हम भी हैं साथ तुम्हारे

क्यों हो गए इतने मजबूर अकेले ही चल दिए।
हम भी हैं साथ तुम्हारे फिर क्यों अकेले ही चल दिए।
इस विपरीत परिस्थितियों में हम भी हैं साथ तुम्हारे
क्यों हमें असहाय कर दिए ।
सोचा तो होगा क्या इसका परिणाम क्या होगा
पूरा देश जब बंद है घरों में फिर क्यों अकेले चल दिए।



माना की जंग लड़ी जाती है मैदान में,
पर अभी तो ठहर जाओ अपने अपने आशियाने में,
फिर  मिलकर हम आगे आएंगे
लेकिन अभी निकल गए तो बहुत पछताएंगे
हम भी तो हैं साथ तुम्हारे फिर क्यों अकेले ही चल दिए।

Why have you been so compelled to walk alone, we are also with you, why have you walked alone in this adverse situation, we are also together, why have you thought of us helpless?  I am also with you, why did you walk alone, the battle is fought, but stop in the plains now, we will come forward together again in our respective homes but now we leave  We will regret a lot, we are together with you, why did you walk alone?

जंग तो बहुत देखे हैं दुनिया में इस दौर में

जंग तो बहुत देखा है दुनिया ने इस दौर में,
एक तरफ शोषण करते रहे हथियारों के होड़ में।
रक्त में कितने के ना जाने कितने जान गवाही है।
न जाने कितनों के आशिया बिखर गए
हथियारों के इस दौर में। यह कैसी कीमत चुकाई है।

दुनिया में रहती थी शांति अब बहुत शोर है।
बर्बाद हुए बैठे हैं फिर भी बहुत गुरूर है।
कभी नहीं सोचा यह कैसी कीमत हमने चुकाई है।
जंग तो बहुत देखा दुनिया ने इस दौर में,

समझौते की बुनियाद तो जीवन पाया है।
बचा सके ना अपनों को ना जाने कितनी जाने गवाए है।
अपने ख्वाहिश के चक्कर में दुनिया में नफरत की आग फैलाई है।
हथियारों के इस दौर में ये कैसी कीमत चुकाई है



सोमवार, 18 मई 2020

अंधकार हुई नगरी में दिया जलाने आया हूं।

अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।
जिनका जमीर सो गया है उसे जगाने आया हु।
पथ से भटक गए राहगीरों को मार्ग पर ले जाने आया हूं।
अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

नफरत की आग से जल रहे घरों को
प्यार की बारिश से बुझाने आया हूं।
हम एक हैं यह पैगाम लेकर
सबको एक समाज में पिरोने आया हूं।
अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

गुरुजनों के इस धरती पर  की सभ्यता बचाने आया हूं।
अब ना हो किसी के साथ अत्याचार
यह संदेश जन-जन तक पहुंचाने आया हूं।
मैं भी इंसान हूं , इंसानों का दर्द आप तक पहुंचाने आया हूं। अंधकार हुई नगरी में एक दिया जलाने आया हूं।

दो पल का भी आराम नहीं।

जिंदगी की इस रेस में हर कोई दौड़ जा रहा है।
मुकाम पाने की जीदो जहद में जिंदगी को भूलता जा रहा हूं।
अपनी चाहत किश्ती में बैठकर दुनिया को पाना चाहता है
जिंदगी की रेस में हर कोई दौड़ता जा रहा है।

राह इतनी आसान नहीं जो मिल जाए हर मुहाफिज को मंजिल
जिंदगी की तलाश खुद को भूलता जा रहा हूं।
दो पल का भी आराम नहीं बस चलता ही जा रहा है।
 जिंदगी की रेस में हर कोई दौड़ता ही जा रहा है।

न जाने कब रुखसत कर रहे जिंदगी से
दरकार बस इतनी है खुश रहे जिंदगी मुझसे
खुशियों को ढूंढते ढूंढते।
जिंदगी की इस रेस में हर कोई बस करता ही जा रहा है

मोहब्बत

फुर्सत के चंद लम्हों में बस तेरा इंतजार करता हूं।
 सब कुछ था मोहब्बत में लेकिन अब भी तेरा इंतजार करता हूं।


हर पल की तसल्ली है मुझको पर दिल अभी तेरा इंतजार करता है।
दरकार है मुझे तेरी मोहब्बत का दिल को तेरी अब भी तलब है।

रिवायत है कि मोहब्बत में दिल दिया करते हैं।
पर क्यों हमें इंतजार करने के लिए छोड़ जाया करते है ।

ये कशिश है, तेरी आंखों का जो मैं तेरा इंतजार करता हूं।
मिल जाए तेरी मोहब्बत शिद्दत से रात में बैठकर महताब का दीदार करता हूं ।

फुर्सत के चंद लम्हों में बस तेरा इंतजार करता हूं।
सब कुछ तो था मोहब्बत में लेकिन अब भी तेरा इंतजार करता हूं।

रविवार, 17 मई 2020

विश्वास

विश्वास किस पर करें।
आंखों से बहते हैं आंसू पर
या फिर उनकी बातों पर
आंखें हर एक राज बयां कर देती हैं।
जो लबो ने उनसे छुपाया हो,
विश्वास किस पर करें।

विश्वास करे गलतियों पर
या गलती करने वालों पर
उंगली किस पर उठाई जाए जुल्म करने वालों पर
या फिर जुल्म सहने वालों पर
खामोश जुबा है पर आंखों से सच्चाई नहीं छुपाई जाती
विश्वास किस पर करें ।

विश्वास किसका करें।
लोगों के मुस्कुराते चेहरे पर
या हैवानियत भरी निगाहों पर
दर्द सभी को होता है कोई हंसकर सह लेता है ।
कोई दर्द में डूबा रहता है
इस दर्द में हर कोई फायदा उठाते है
विश्वास किस पर करें।

है मर्जी तेरी क्या


है मर्जी तेरी क्या?
क्यों खामोश हो जाते हैं अधरों की मुस्कान
क्या लिखा है मेरी हाथों की लकीरों में,
यह भी तो नहीं पता ।
है तेरी मर्जी क्या?
खोजता आ रहा हूं मैं जिसको वह तो मेरे पास है।
क्यों भटक रहा हूं अंधेरी गलियों में जब मुझे उजाले की तलाश है।
यह कैसी चाहत है यह भी नहीं पता
है तेरी मर्जी क्या?
चंद लम्हों की बात है।
जिंदगी भी गुजरती एक रात है।
लहरें भी किनारे पर आ जाती है।
लेकिन ऐसा साथ कहां
है मर्जी तेरी क्या ?

तमन्ना


कभी अकेले तन्हाई  में तुम्हारे आने का इंतजार करता हूं।
कभी तेरी उन यादों से प्यार करता हूं।
कभी तेरी ही प्यारी सी मुस्कान के साथ अकेले ही हंसता रहता हूं।
यह जानता हूं कि तन्हाई भरा सफर है।
फिर भी तेरी यादों के सहारे उन पर गुजरता हूं ।
कभी अकेली तनहाई तुम्हारे आने का इंतजार करता हूं।


कभी तेरी यादों के बारिश में भेजता हूं।
तो कभी तेरी यादों के सावन का इंतजार करता हूं ।
तुम कभी आओगी मेरी जिंदगी में, उस पल का इंतजार करता हूं।
कभी अकेली तनहई में तुम्हारे आने का इंतजार करता हूं।


तुम मेरी तन्हाई के साथी हो।
तुम मेरे जीवन के कुछ पलों की हमसफर हो।
जिसे मैं आंखों में बसाकर बस तुमसे ही प्यार करता हूं।
कभी अकेली तनहाई में तुम्हारे आने का इंतजार करता हूं।

फेम की मदहोशी

  यौवन   : वो मौसम जिसको आना तो एक बर हैं। समय के             साथ बिखर जाना भी हैं।         खूबसूरत कलियों को देख भोरे खींचे चले आते है।    ...